भाषा कौन बनाता है? भाषा किसी संपादक, किसी व्याकरण शास्त्री, किसी आलोचक के बनाये नहीं बनती. भाषा को आम आदमी बनाता है वो आदमी जो भाषा को बेखटके, बिना नापतौल के, बिना किसी पोथन्ने के पन्ने पलटे, प्रवाह सहित बोलता वापरता है. व्याकरण शास्त्री या भाषा शास्त्री अपना इंचीटेप लेकर आम आदमी के बोले हुये को नापता और अपनी बही में नोट करके कहता है कि यह है भाषा. किसी प्रूफ रीडर की हैसियत को कम मत आंकिये या हिकारत से मत देखिए. वह किसी भी बडे धुर्रे संपादक या व्याकरण शास्त्री से अधिक शब्दों के संपर्क में आता है और हर छपे हुये को यह कहकर मत नकार दीजिये कि यह लेखक का लिखा नहीं बल्कि प्रूफ रीडर ने गलती कर डाली है.
जब हिन्दी शब्द सागर बन रहा था तब बाबू श्यामसुन्दर दास ने मुंशी रामलगन लाल को सालों सिर्फ इसलिये लगाया कि वे आम आदमी (बाबू श्याम सुन्दर दास के शब्दों में "अहीरों, कहारों, लोहारों, सोनारों, तमोलियों, तेलियों, जोलाहों, भालू व बन्दर नचाने वालों, कूचेबन्दों, धुनियों, गाड़ीवानों, कुश्तीबाजों, कसेरों, राजगीरों, छापेखानेवालों, महाजनों, बजाजों, दलालों, जुआरियों, महावतों, पंसारियों, साईसों आदि) के पास जायें और आम आदमी के द्वारा प्रयोग किये जाने वाले शब्दों के एकत्रित कर सकें.
हिन्दी में गाली गलौज और गाली गलौज दोनों भरपूर मात्रा में प्रयोग होते रहे हैं, संपादक, लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार या अनुवादक सभी ने दोनों शब्दों का प्रयोग किया है. जैसे
ओस की बूंद में श्री राही मासूम रज़ा
(राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित)
पहला पड़ाव में श्री श्रीलाल शुक्ल
(राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पहला पड़ाव से)
कमलेश्वर
(इसके अतिरिक्त अघोषित आपातकाल पृष्ठ 204 भी देखिये )
मोहन राकेश- मलबे का मालिक
(ज्ञानपीठ प्रकाशन द्वारा प्रकाशित मोहन राकेश के कहानियों के संकलन "नये बादल" से )
भीष्म साहनी - मय्यादास की माड़ी
(इसके अतिरिक्त भीष्म साहनी की "वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित अपनी बात के पृष्ठ 167 पर एवं राजकमल पेपरबैक्स द्वारा प्रकाशित "बसन्ती " के पृष्ठ 78 पर भी देखें )भगवती चरण वर्मा - सबहिं नचावत राम गुंसाई
(राजकमल पेपरबैक्स द्वारा प्रकाशित )
"रेणु" जी - चुनी हुई रचनायें - टोंटी नेंन का खेल.
(श्री भारत यायावर द्वारा संपादित "फणीश्वर नाथ रेणु - चुनी हुई रचनायें" से - वाणी प्रकाशन)
मुंशी प्रेमचंद जी -
(जनवाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित प्रेमचन्द रचनावली भाग 7 से )
सेठ गोविन्द दास - आत्म निरीक्षण
(गोविन्ददास ग्रंथावली - पांचवा भाग - "भारतीय विश्व प्रकाशन द्वारा प्रकाशित)
लतीफ "घोंघी" कुछ नहीं होने की पीड़ा
(पुस्तकायन द्वारा प्रकाशित )
सियाराम शरण गुप्त - अंतिम आकांक्षा से
(लेखक के संस्थान साहित्य सदन झांसी से प्रकाशित अंतिम आकांक्षा पृष्ठ 89 )(श्री ओम थानवी का कहना है कि सियाराम शरण गुप्त की रचनावली में यह गाली गलौज है. निम्न इमेज सियाराम शरण गुप्त की 1964 में प्रकाशित पुस्तक से है वहां भी यह गाली गलौच ही है और यह किताब रचनावली से पहले ही छपी है और हाथ से कम्पोज की गई है.)